Wednesday, August 25, 2010

नास्तिक...! : काव्यरसिक

नास्तिक...!
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देव होता कसा कोण पाहीला नाही,
आज माझ्यातही देव राहीला
नाही... रेखिली ही ललाटे अशी गूढ
सारी, भोग भोगायचा कोण राहीला
नाही... आसवांचे किती पूर वाहून
गेले, एक अश्रुसुद्धा आज
वाहीला नाही... देव पाण्यात मी
सोडलेले जरीही, मी कुणालाच
पाण्यात पाहीला नाही... आयुष्य
हे सोस सोसून मेले, शेवटाचा
तरी घाव साहीला नाही... जाहलो मी
खरा होय नास्तिक येथे, मीच
माझ्यातला देव पाहीला नाही...
----------------------------------------------------------------नचिकेत
भिंगार्डे
'सुरेशभट.इन'वरील दुवा:
http://sureshbhat.in/node/2310

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