ये दुनिया भी बडी अजीब है, तेरी
मौत पे रोती है उम्रभर तू रोता
रहा, और ये जालीम हंसती रही.
उसुलो की पाबंद दुनियामें
अपने अपनोंको मारते रहे तेरी
खुदगर्जी लेकिन उनकी नजरमें
मस्ती रही. यहां तो आदत है
जुकाम के लिये भी हकिम के दर
जाना रईसोंकी इस महफिलमें तुझ
गरीब की जान सस्ती रही. तेरी
मौत के बाद हर तरफ खैराते बंट
रही है तेरे घरमें तो हमेशा
भूख-प्यास की बस्ती रही. पता है
हर किसीको साहिल नसीब नही होता
जहाजोके काफिलेमें मगर तेरी
तो डूबती कश्ती रही.
'सुरेशभट.इन'वरील दुवा:
http://www.sureshbhat.in/node/
Friday, May 7, 2010
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